UP TAK की ‘गंगा यात्रा’: हम जानेंगे गंगा किनारे के ‘मन की बात’, पूछेंगे- किसकी बनेगी सरकार

सुषमा पांडेय

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गंगा, यानी आस्था की अविरल धारा, जिसके संग-संग बहती हैं धार्मिक मान्यताएं. वहीं, गंगा की गोद में पलती है संपन्नत और खुशहाली. गंगा यानी भारत की पवित्र नदियों में ऐसी नदी, जिसकी महिमा की व्याख्या न की जा सके. गंगा के धार्मिक महत्व के साथ-साथ इसका आर्थिक महत्व भी है. अगर चुनावी मौसम हो तो इसका सियासी महत्व भी. बात जब उत्तर प्रदेश की राजनीति की हो तो गंगा के महत्व का कहना ही क्या. जिस गंगा मैया में डुबकी से उद्धार की बात कही जाती है, वही गंगा अब सियासी उद्धार के लिए भी सबसे जरूरी मानी जाती है.

ऐसे समय में जब उत्तर प्रदेश आगामी विधानसभा के लिए तैयार हो रहा है, यूपी तक शुरू कर रहा है गंगा यात्रा. इस यात्रा में गंगा के किनारे बसे यूपी के जिलों में पहुंच रही है यूपी तक की टीम. यह जानने कि क्या कहता है वोटर गंगा किनारे वाला.

यहां नदियों के किनारे ही सभ्यताओं का विकास हुआ और नदियों के किनारे ही रोजगार, व्यापार की संभावना सबसे ज्यादा होती है. ऐसे में सबसे अहम नदी गंगा के किनारे क्या है रोजगार का हाल? गंगा के किनारे के जिलों में उद्योग धंधे कैसे हैं? उन धंधों से जुड़े लोगों की हालत चुनाव दर चुनाव के बाद कैसी है? ये जानने की कोशिश हम गंगा यात्रा के जरिए कर रहे हैं. इस बार के चुनाव में रोजगार और महंगाई के बड़े मुद्दे हैं, तो वहीं सियासी पार्टियां इन मुद्दों पर कितनी तैयार हैं, यह भी हम जानने की कोशिश कर रहे हैं.

2014 में गंगा किनारे से ही बदली थी देश की सियासी तस्वीर

आप यह भी नहीं भूले होंगे कि 2014 में इसी गंगा ने बीजेपी का बेड़ा पार किया था. काशी से पहली बार चुनाव लड़े प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था ‘मुझे गंगा मैया ने बुलाया है.’ गंगा किनारे खड़े होकर, धर्म की डोर पकड़े पीएम मोदी ने जब शंखनाद किया तो यूपी के वोटरों ने बीजेपी को भारी समर्थन दिया. ‘मुझे मां गंगा ने बुलाया है’ से शुरू होकर ‘नमामि गंगे’ तक, 2019 में जब चुनावों की बारी आई, तो फिर सियासी नैया को पार लगाने के लिए BJP को मां गंगा ही याद आई. 2019 में बाकी दल भी गंगा मैया के सहारे नजर आए. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी गंगा में डुबकी लगाती नजर आईं. उन्होंने प्रयागराज से काशी तक गंगा यात्रा से चुनावी उद्घोष किया था.

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अब फिर चुनाव हैं तो सियासी दल सत्ता की चाबी के लिए इसी गंगा में डुबकियां लगाने की तैयारी में हैं. तभी एक ओर बीजेपी नेता गंगा में नाव पर बैठकर कमल नौका रैली निकाले रहे हैं, तो प्रियंका गांधी ने भी गंगा पूजा से अपनी पश्चिमी यूपी की सियासी यात्रा की शुरुआत की है. समाजवादी पार्टी (एसपी) अध्यक्ष अखिलेश यादव भी गंगा के तट से यमुना के तट तक विजय यात्रा का आगाज कर चुके हैं. ये सियासी दल धर्म के साथ-साथ गंगा के किनारे के जातीय समीकरणों को साधने की भी भरपूर कोशिश कर रहे हैं.

सियासत के केंद्र में गंगा पहले से ही है, लेकिन इसका विराट रूप देखने को मिला 2014 से. दरअसल, इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है कि हमारे देश में किसी भी प्रदेश में जाइए तो वहां गंगा को ‘मां’ माना जाता है. लोग गंगा को आस्था की नजर से देखते हैं. यूपी में तो और भी ज्यादा मान्यताएं हैं. ऐसे में मैली होती गंगा बड़ा मुद्दा रही.

राजीव गांधी ने जून 1986 को गंगा कार्ययोजना की आधारशिला काशी के राजेंद्र प्रसाद घाट पर रखी थी. वहीं, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के कार्यकाल में गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया गया, लेकिन गंगा की स्वच्छता और अविरलता बड़ा मुद्दा ही बना रहा है.

गंगा को बचाने के आंदोलन वक्त-वक्त पर जारी रहे. अचानक माहौल 2013 से बदला तो एक बार फिर हिंदुत्व की लहर में गंगा बड़ा मुद्दा बन गई. गंगा-गीता और राम के नाम पर बीजेपी को अप्रत्याशित जीत मिली. यूपी की 71 सीटों पर बीजेपी ने कमल खिलाया, सहयोगियों के साथ मिलकर 80 में से 73 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाया. नमामि गंगा परियोजना शुरू हुई. गंगा की स्वच्छता के लिए अलग मंत्रालय बना.

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2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने गंगा में डुबकी लगाई, तो जीत की सीपी मिली. योगी महाराज सीएम बने तो गंगा को लेकर कई वादे किए. ऐसे में मां गंगा से और वोटर्स से किए गए कितने वादे पूरे हुए, इसकी पड़ताल भी यूपी तक अपनी गंगा यात्रा में कर रहा है.

उत्तराखंड से निकल कर गंगा पहुंचती हैं पश्चिमी यूपी में. हापुड़, मेरठ, बिजनौर, बुलंदशहर, अमरोहा, बदांयू, कासगंज, फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर से होते हुए अवध यानी हरदोई, कन्नौज, कानपुर, उन्नाव, फतेहपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़, प्रयागराज और फिर कौशांबी, भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, बलिया तक पूर्वांचल के कई जिलों में गंगा मैया अहम हो जाती हैं.

गंगा किनारे के इन सभी जिलों में हम पहुंचेंगे ग्राउंड रियलिटी चेक करने के लिए कि गंगा किनारे का वोटर इस बार किसे देगा जीत का आशीर्वाद?

जुड़िये यूपी तक की ‘गंगा यात्रा’ से

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चुनावी यात्रा में यूपी तक की गंगा यात्रा से आप भी जुड़ सकते हैं. यहां हम आपके साथ एक फॉर्म का लिंक शेयर कर रहे हैं. इस लिंक को यहां क्लिक कर खोला जा सकता है. इसे क्लिक करने पर एक फॉर्म खुलेगा, जहां आपको अपना नाम, मोबाइल नंबर, जिला और आप किस मुद्दे पर बात करना चाहते हैं, जैसी बेसिक जानकारियां देनी हैं. इसके बाद आप यूपी तक की गंगा यात्रा के सहभागी हो सकते हैं.

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