2 भाइयों ने कर ली एक ही लड़की से शादी! गजब की इस प्रथा पर CM तक कर चुके हैं लखनऊ यूनिवर्सिटी से पीएचडी

यूपी तक

UP News: हिमाचल प्रदेश की प्राचीन बहुपति प्रथा फिर चर्चाओं में हैं. पर्वतीय हाटी समाज में 2 भाइयों ने एक ही लड़की से शादी की है.

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UP News: हिमाचल प्रदेश की प्राचीन बहुपति प्रथा एक बार फिर चर्चाओं में हैं. हिमाचल के सिरमौर जिले के शिलाई क्षेत्र के कुन्हट गांव में 2 सगे भाइयों ने एक ही युवती से शादी की है. 

बता दें कि ये विवाह हाटी समाज में होता है और इस विवाह प्रथा को उजला पक्ष कहा जाता है. बताया जा रहा है कि सालों बाद एक बार फिर हाटी समाज में इस सदियों पुरानी प्रथा से शादी हुई है. 

आपको ये भी बता दें कि एक मुख्यमंत्री तक ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इस बहुपति प्रथा पर पीएचडी भी कर चुके हैं. दरअसल हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे वाय.एस परमान ने लखनऊ विश्वविद्यालय से हिमाचल की बहुपति प्रथा पर पीएचडी की थी.

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2 भाइयों ने एक ही लड़की से की शादी

जिन 2 भाइयों ने एक ही लड़की से शादी की है, उनमें से एक भाई जल शक्ति विभाग में सरकारी कर्मी है और दूसरा भाई विदेश में नौकरी करता है.

इस ऐतिहासिक परंपरा को पूरे प्राचीन रीति रिवाजों से पूरा किया गया और हाटी समाज की भारी संख्या के सामने ये बहुपति विवाह संपन्न किया गया.

दुल्हन सुनीता चौहान ने ये कहा

न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, इस शादी का आयोजन 3 दिनों तक चला. दुल्हन सुनीता चौहान ने कहा कि उसे इस प्राचीन परंपरा के बारे में जानकारी है. 

दुल्हन ने बताया कि उसने इस विवाह का फैसला बिना किसी दबाव में लिया है. वह हमेशा इस रिश्ते का सम्मान करेगी.

दूल्हा बने प्रदीप और कपिल ये बोले

प्रदीप और छोटे भाई कपिल ने सुनीता चौहान के साथ शादी की है. दोनों भाइयों का कहना है कि उन्होंने अपनी परंपराओं को समाज के सामने निभाया है. ये पूरे परिवार का फैसला था और उन्हें अपने इस फैसले पर गर्व है. 

हाटी समाज के बारे में भी जानिए

हाटी समुदाय हिमाचल प्रदेश-उत्तराखंड सीमा पर रहता है. 3 साल पहले ही इस समुदाय को  अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया है. इस जनजाति में सदियों से बहुपति प्रथा प्रचलित है. मगर अब इसके मामले काफी कम हो गए थे.

गांव के बुजुर्गों के अनुसार, इस तरह के विवाह अब गुप्त रूप से संपन्न किए जाते हैं और समाज द्वारा स्वीकार किए जाते हैं. आपको बता दें कि लाहौल, किन्नौर और स्पीति जैसे कई पर्वतीय जिलों में ये परंपरा आज भी किसी ना किसी रूप में जिंदा है. 

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