कृषि कानून वापस पर लखनऊ महापंचायत होगी, चुनावी मौसम में बढ़ेंगी योगी सरकार की मुश्किलें?

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पीएम मोदी ने शुक्रवार, 19 नवंबर को देश के नाम संबोधन में 3 नए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी पीएम के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा एमएसपी के सम्बन्ध में एक समिति के गठन के निर्णय का भी प्रदेश सरकार की ओर से स्वागत किया है. उधर विपक्ष अभी भी केंद्र और प्रदेश की बीजेपी सरकार को लेकर हमलावर है. विपक्ष इसे किसानों की जीत बताने के संग-संग यह भी दावा कर रहा है कि यूपी चुनावों में हार के डर से मोदी सरकार को यह फैसला लेना पड़ा है. इस बीच बड़ा सवाल यह है कि किसान कानूनों को वापस लेने के बाद किसान आंदोलन खासकर यूपी के लखनऊ में प्रस्तावित किसान महापंचायत का क्या होगा?

इसे लेकर संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) और भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत, दोनों ने ही रुख साफ कर दिया है. संयुक्त किसान यूनियन ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा है कि तीन कृषक कानूनों को निरस्त करने का पीएम मोदी का कदम स्वागतयोग्य है. हालांकि उन्होंने 22 नवंबर को लखनऊ में प्रस्ताविक किसान महापंचायत को लेकर भी रुख साफ करते हुए कहा है कि ‘लखनऊ किसान महापंचायत को सफल बनाने के लिए भी जोरदार लामबंदी चल रही है.’ एसकेएम ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामलो को भी उठाते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईपीएस अधिकारी पद्मजा चौहान को विशेष जांच टीम में शामिल करना गंभीर चिंता का विषय है.

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि अभी किसानों की कई महत्वूर्ण मांगें लंबित हैं. उन्होंने दावा किया कि इस आंदोलन में 675 से अधिक किसानों ने अपने जीवन का बलिदान दिया है और इसे व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा. प्रेस रिलीज के मुताबिक, ‘एसकेएम को उम्मीद है कि भारत सरकार, 3 किसान विरोधी कानूनों को निरस्त करने की घोषणा कर झुकी है, वह घोषणा को बेकार नहीं जाने देगी, और विरोध कर रहे किसानों की लाभकारी एमएसपी की गारंटी के लिए वैधानिक कानून सहित सभी जायज मांगों को पूरा करने की पूरी कोशिश करेगी. एसकेएम भी सभी घटनाक्रमों का आकलन करेगा और अपनी अगली बैठक में आगे के लिए आवश्यक निर्णय लेगा.’

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आपको बता दें कि शनिवार और रविवार को एसकेएम की बैठक होनी है. इससे पहले बीकेयू नेता राकेश टिकैत भी कह चुके हैं कि एमएसपी पर कानूनी गारंटी मिले बिना किसानों का आंदोलन वापस नहीं होगा. इससे पहले विपक्ष की तरफ से प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव और मायावती ने भी किसान कानूनों को वापस लेने के फैसले के बाद भी सरकार को घेरा है.

प्रियंका गांधी ने कहा, ‘बीजेपी के नताओं ने किसानों को क्या-क्या नहीं बोला, आन्दोलनजीवी, गुंडे, आतंकवादी, देशद्रोही… ये सब किसने कहा? जब ये सब कह रहे थे तो प्रधानमंत्री जी चुप क्यों थे? बल्कि उन्होंने भी किसानों को आन्दोलनजीवी कहा था.’

इसी तरह अखिलेश यादव ने सवाल उठाते हुए कहा कि अमीरों की बीजेपी ने भूमिअधिग्रहण व काले कानूनों से गरीबों-किसानों को ठगना चाहा. कील लगाई, बाल खींचते कार्टून बनाए, जीप चढ़ाई लेकिन एसपी की पूर्वांचल की विजय यात्रा के जन समर्थन से डरकर काले-कानून वापस ले ही लिए. बीजेपी बताए सैंकड़ों किसानों की मौत के दोषियों को सजा कब मिलेगी.’

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संयुक्त किसान मोर्चा और किसान नेता राकेश टिकैत का रुख बता रहा है कि अभी आंदोलन की आंच कम नहीं होने जा रही है. लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ी से कुचलने के मामले में अब भी एसकेएम की मांगें अधूरी हैं. ऐसे में चुनावी मौसम के समय लखनऊ में होने जा रहा किसान आंदोलन यूपी में योगी सरकार की राह को कठिन बनाता नजर आ रहा है.

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